मिठास मेरी मराठी की
मिठास मेरी मराठी की आसाम राज्य के गोलाघाट गांव में विवेकानंद केंद्र के विद्यालय की इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था। सुबह विद्यार्थियों को विद्यालय में पढ़ाना और दोपहर के समय निर्माण कार्य की देखरेख के लिये जाना, इसमें मैं पूरी तरह से उलझी हुई थी। उसमें ही आतंकवादियों की धमकियों का टेन्शन था ही। ऐसे समय में कभी कभार निराशा के बादल भी मन में जमा हो जाते। उस पर मलेरिया का बुखार हर तीन सप्ताह के बाद फिर पलटकर आ जाता। एक दिन दोपहर को ३५-४० बरस की एक महिला मुझसे मिलने आई। कहने लगी, "मेरे पिता सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। श्री बरुआ उनका नाम । उन्होंने आपको हमारे घर चाय पीने के लिये बुलाया है। मैं अपनी ससुराल में रहती हूँ। दस-पन्द्रह दिन यहाँ हूँ। उस बीच यदि आप आ सकें तो मुझे भी खुशी होगी। " आमंत्रण स्वीकार करते हुए मैने कहा, "अभी एकदम तो मेरा आना संभव नही होगा लेकिन फुरसत से आऊंगी अवश्य । आपके पिताजी को मेरी ओर से धन्यवाद कहिये।" उसके बाद भी हर दो-तीन दिन बाद वह मुझे किसी न किसी के द्वारा संदेश भिजवाती, "हमारे घर चाय पीने आईये।" अत्याधिक व्यस्तता के कारण...