Posts

Showing posts from May, 2020

बेटी है हमारी…

बेटी है हमारी… माननीय बाबा आमटे जी की भारत जोड़ो यात्रा अरुणाचल प्रदेश के इटानगर से प्रारंभ हुई थी। अनेक लोग इस साइकिल यात्रा में शामिल हुए थे। राह में गोलाघाट में एक दिन वे रुकेंगे, ऐसा सुना था। परंतु उस तारीख की जानकारी नहीं थी। गोलाघाट में समाचार पत्र दुकान जाकर लाना पड़ता था। कई बार बारिश होती, तो केवल समाचार पत्र लेने के लिये दुकान जाने की इच्छा न होती। इसी कारण बाबा आमटे जिस दिन गोलाघाट आनेवाले थे, उसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी।  उस दिन शाम को बाजार से वापस आते समय बस स्टॅण्ड के सामने के मैदान में काफी भीड़ दिखाई दी। किसी का भाषण चल रहा था। अभी तो कोई चुनाव नहीं है, तब यह भाषण कैसा ? तभी लाउड स्पीकर के कारण कुछ वाक्य कानों से टकराए। उसमें अखंड भारत, राष्ट्रीय एकात्मता इत्यादि शब्दों के कारण तुरंत बत्ती जली, "निश्चित ही बाबा आमटे !" अचानक ही भक्त को प्रत्यक्ष ईश्वर के दर्शन से जैसा आनंद होगा, वैसा आनंद मुझे बाबा आमटे जी को मंच पर देखकर हुआ। आसाम के सार्वजनिक मैदान में जो भाषण होते हैं, उनकी विशेषता यह है, की ये भाषण लोग घंटों खड़े होकर ही सुनते हैं, नीचे बैठकर न

तू ही राम है - तू रहीम है...

तू ही राम है - तू रहीम है... बहुत साल हो गये इस घटना को । देशपांडे काकु का एक दिन फोन आया। उनकी परिचित शबनम नामक एक मुसलमान लड़की मेडिकल कॉलेज के हॉस्टेल में रहती थी। परंतु हॉस्टेल में सहपाठियों की गपशप, गाने आदि के कारण उसकी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती। परीक्षा तक एकाद महीने के लिये उसे रहने के लिये कमरा चाहिये है। तुम्हारे घर रहे तो चलेगा क्या ? वह स्वभाव से नेक है, ऐसा उन्होंने कहा। पढाई के लिये कमरा चाहिये है यह सुनकर मुझे भी नकार देने की इच्छा नहीं हुई। मैं ने कहा, "स्वतंत्र कमरा तो नहीं मिल सकेगा, परंतु वह मेरे घर पर अवश्य रह सकती है। वैसे मेरे घर पर कोई नहीं होता अतः वह शांति से अपनी पढ़ाई कर सकेगी।" दूसरे ही दिन शबनम सामान सहित मेरे घर पहुँच गई। एकदम गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखें, हँसमुख और बातूनी। मैने उसे कमरा दिखाया। उसकी पलंग के सामने ही हमारा पूजा मंदिर । सामान जमाकर थोड़ा घबराते हुए उसने पूछा - "भारती ताई, मैं सुबह-शाम नमाज पढ़ती हूँ। आपको चलेगा ?" "हाँ क्यों नहीं । मुझे कोई आपत्ति नहीं।" मैंने उसे आश्वस्त किया। "मैं भी प्रतिद